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भगवान महावीर स्वामी जी के गुणों का गुणगान उनके शिष्य पंचम गणधर सुधर्मा स्वामी जी ने प्राकृत भाषा में किया है...

 भगवान महावीर के निर्वाण के बाद श्री सुधर्मा स्वामी जी को प्रथम आचार्य बनाया गया था.... 

इस अद्भूत रचना का स्वाध्याय करने से अनेक गुणों का विकास तो होता ही है, साथ में...मन भी भाव विभोर हो जाता है...

 दीपावली में इस स्तुति का जाप एवं स्वाध्याय जरूर किया जाता है...
Puchchhissu-nang (पुच्छिस्सुणं-वीरत्थुई) रचनाकार - पंचम गणधर श्री सुधर्मा स्वामी जी by Oswal
रचनाकार :-पंचम गणधर-प्रथम आचार्य श्री सुधर्मा स्वामी जी...
Puchchhissu-nang (पुच्छिस्सुणं-वीरत्थुई) Trailer by Oswal
Teachers Day के उपलक्ष्य में....

देव - अरिहंत, गुरु - निर्ग्रन्थ, धर्म - केवली भाषित दयामय धर्म

#jaigurusudarshan
Dev Guru Dharam Stuti by Oswal
Mahaveerashtak Stotra संस्कृति भाषा में भाग चंद्र जी  द्वारा लिखा गया था......उसका हिन्दी अनुवाद भगवन् श्री राम प्रसाद जी ने अंधेरी रात में अपने गुरुदेव व्याख्यान वाचस्पति पूज्य श्री मदन लाल जी के कहने पे किया था....इसे  दो Version में  record किया  गया है......यह वाला Version-2 है।
Mahaveerashtak Stotra Version-2 (हिंदी अनुवाद - भगवन् श्री राम प्रसाद) by Oswal
Mahaveerashtak stotra Trailer (हिन्दी अनुवाद) by भगवन् श्री राम प्रसाद....in Natural Voice
Mahaveerashtak Stotra Trailer by OSWAL
This Audio of Male-Female made with the help of Artificial intelligence (A.I)
Sundri Nandan Stuti by OSWAL
कल्याण मंदिर स्तोत्र

भगवान पार्श्वनाथ को चिंतामणि के रूप में पूजा जाता है उनका नाम उनका स्तवन हमारी चिंताओं का हरण करने वाला है यह सुख शांति देने वाला है अतः इस *स्तुति को सुनें और हृदयंगम करें 

 *Note* :- यह स्तुति गुरु भक्त द्वारा गाई गई है, इसे बिना MIC और INSTRUMENT के और बिना रुके पूर्ण किया गया है 
Slow motion me record करने का उद्देश्य उच्चारण शुद्ध कर वाना है 

 जय जिनशासन जय पार्श्वनाथ
Kalyaan Mandir by OSWAL
Chintamani Parsavnath Stotra By Oswal | चिंतामणि पार्श्वनाथ स्तोत्र
Chintamani Parsavnath Stotra By Oswal | चिंतामणि पार्श्वनाथ स्तोत्र
पहली किसी से नफरत न करो । दूसरी किसी का दिल न दुःखाओ। तीसरी किसी से हसद' न करो। चौथी किसी को नुकसान न पहुंचाओ। पांचवी किसी के हक पर छापा मत मारो। छेंवी गरूर से सिर ऊंचा न करो। सातवीं अधर्म या हराम की कमाई से परहेज करो। आठवीं नफसानी ख्वाहिशात को दबाए रखो। नौवीं निडर बनो । दसवीं  क्रोध को हजम करो । ग्यारवी प्रभु को हाजिर नाजिर रखो। बारवीं  प्रभु पर भरोसा रखो। ये कुछ गुण ऐसे हैं जिनसे जीवन का पुण्य विकसित हो जाता है। इन सब का सार ये है कि जीवन में किसी प्रकार का निषेधात्मक विचार पैदा नहीं होता। मानव हर घटना से, हर स्थिति से, हर मौके पर अच्छाई ही लेता है और उस अच्छाई से अपने जीवन को सजाता जाता है।
भले ही संसार गुण दोषमय है, परन्तु धार्मिक व्यक्ति वह है जो दोषों का त्याग कर गुणों का चयन करता है। बाग में फूल भी हैं, कांटे भी हैं, भौंरा कांटों की ओर झांकता भी नहीं। केवल फूलों पर नजर रखता है, उन्हीं से उसकी मोहब्बत है। श्री कृष्ण महाराज के सामने मरा हुआ कुत्ता पड़ा था। उन्होंने उसके शरीर से निकलती दुर्गंध की ओर ध्यान नहीं दिया। केवल एक बात देखी कि इस कुत्ते के दांत बहुत सफेद है। इस गुणग्रहण की दृष्टि ने उन्हें महान् बनाया था। आज तक जितने भी अच्छे इंसान हुए हैं उनकी यही खासियत थी कि उन्होंने हर ओर से अच्छाई को ग्रहण किया और बुराई को छोड़ा।

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हर आत्मा में परमात्मा बनने की क्षमता है। (Last Part) Gurudev Shri Sudarshan Laal ji Maharaj
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