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पहली किसी से नफरत न करो । दूसरी किसी का दिल न दुःखाओ। तीसरी किसी से हसद' न करो। चौथी किसी को नुकसान न पहुंचाओ। पांचवी किसी के हक पर छापा मत मारो। छेंवी गरूर से सिर ऊंचा न करो। सातवीं अधर्म या हराम की कमाई से परहेज करो। आठवीं नफसानी ख्वाहिशात को दबाए रखो। नौवीं निडर बनो । दसवीं  क्रोध को हजम करो । ग्यारवी प्रभु को हाजिर नाजिर रखो। बारवीं  प्रभु पर भरोसा रखो। ये कुछ गुण ऐसे हैं जिनसे जीवन का पुण्य विकसित हो जाता है। इन सब का सार ये है कि जीवन में किसी प्रकार का निषेधात्मक विचार पैदा नहीं होता। मानव हर घटना से, हर स्थिति से, हर मौके पर अच्छाई ही लेता है और उस अच्छाई से अपने जीवन को सजाता जाता है।
भले ही संसार गुण दोषमय है, परन्तु धार्मिक व्यक्ति वह है जो दोषों का त्याग कर गुणों का चयन करता है। बाग में फूल भी हैं, कांटे भी हैं, भौंरा कांटों की ओर झांकता भी नहीं। केवल फूलों पर नजर रखता है, उन्हीं से उसकी मोहब्बत है। श्री कृष्ण महाराज के सामने मरा हुआ कुत्ता पड़ा था। उन्होंने उसके शरीर से निकलती दुर्गंध की ओर ध्यान नहीं दिया। केवल एक बात देखी कि इस कुत्ते के दांत बहुत सफेद है। इस गुणग्रहण की दृष्टि ने उन्हें महान् बनाया था। आज तक जितने भी अच्छे इंसान हुए हैं उनकी यही खासियत थी कि उन्होंने हर ओर से अच्छाई को ग्रहण किया और बुराई को छोड़ा।

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हर आत्मा में परमात्मा बनने की क्षमता है। (Last Part) Gurudev Shri Sudarshan Laal ji Maharaj
उत्तराध्ययन सूत्र में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने फरमाया है। कि कुछ लोगों का जीवन असंस्कृत होता है। असंस्कृत का मतलब ये है कि उनका जीवन ऐसे ही होता है जैसे कि Negative Photo | आप अपने Drawing Room में Negative Photo नहीं लगाते। उसे कोई देख ले तो ऐसा लगेगा मानो कोई भूत हो। वही Negative जब धुलकर साफ हो जाता है तब वह Frame में जड़ा जा सकता है। एलबम में जोड़ा जा सकता है। किसी को दिखाया जा सकता है। यही स्थिति हमारे जीवन की है। इसमें बहुत से दोष दुर्गुण हैं उनकी सफाई हो जाए तो यही जीवन एक शानदार नमूना बन सकता है। ये आत्मा अन्तरात्मा, महात्मा बनते-2 परमात्मा के लैवल तक पहुंच सकती है। नर से नारायण, कंकर से शंकर तथा शव से शिव बनने का यही तरीका है। भगवान् महावीर ने हर आत्मा को परमात्मा कहा है। उनका भाव ये है कि हर आत्मा में परमात्मा बनने की योग्यता है, उस योग्यता को उजागर करना है। उस परमात्म भाव को उजागर करने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है|

इसका अगला भाग कल अपलोड होगा|

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हर आत्मा में परमात्मा बनने की क्षमता है। (First Part) Gurudev Shri Sudarshan Laal ji Maharaj
क्षमा तो परमात्मा का प्रथम और सर्वोत्तम वरदान है। विश्व के रंगमंच पर आदमी को सैकड़ों हजारों लोगों से वास्ता पड़ता है। कुछ नफरत के बदले में भी मोहब्बत का पैगाम सुनाते हैं। और कुछ प्यार के बदले में भी खार बांटते हैं। अपने साथ धोखा करने वालों के साथ अच्छा बर्ताव करना लगभग असंभव है, परंतु धार्मिक आदमी असंभव को भी संभव बना सकता है। पंजाब के महान प्रतापी आचार्य श्री कांशीराम जी एक शहर में विराजमान थे। वहीं एक बुजुर्ग महिला मृत्यु शय्या पर पड़ी आखिरी सांस गिन रही थी। घर के सदस्य आचार्य श्री जी के चरणों में आए, कहने लगे- भगवन्, आप श्री जी हमारी बुढ़िया को संथारा करवा दो ताकि उसकी गति सुधर जाए। आचार्य श्री जी उस बुढ़िया के पास आए, देखा, घरड़ा' बोल रहा था। कुछ ही समय की मेहमान थी। कहने लगे-देवी, परलोक की यात्रा करनी है, संथारा कर लो, उसने हाथ जोड़ लिए आचार्य श्री जी ने फिर कहा- संथारा लेने से पहले सबसे खिमत खिमावना कर लो, छोटे-बड़े सबसे माफी मांग लो, दिल का सारा बोझ उतर जाएगा। बुढ़िया से बोला नहीं जा रहा था फिर भी जोश आ गया। कहने लगी- 'और सबसे माफी मांग लूंगी, पर छोटी बहू से नहीं मांगूगी। मर जाऊंगी मगर इससे माफी मांगने की बात मंजूर नहीं।' आचार्य श्री जी ने बहुत समझाया, मगर द्वेष की गांठ नहीं खुली।

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सच्ची भक्ति लोगों को जोड़ती है, तोड़ती नहीं। (Last Part) Gurudev Shri Sudarshan Laal ji Maharaj
आचार्य श्री जी की क्षमा का बाबा नारायणदास जी पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि उसकी समस्त चेतना रूपान्तरित हो गई। सोचने लगा, मैंने इतने धार्मिक ग्रंथ पढ़े हैं, वेद-पुराणों का ज्ञाता हूं, संस्कृत भाषा का प्रकाण्ड पंडित माना जाता हूं, सुंदर प्रवचन करता हूं, पर मेरे मन में अब भी तीव्र ईर्ष्या और प्रतिशोध का दावानल सुलग रहा है, जब कि ये जैन संत शायद इतने भाषाविद् न भी हो, परन्तु इनके जीवन के कण-कण में शांति, समता, सहिष्णुता और क्षमाशीलता समाई हुई है। इन्होंने मुझ जैसे हत्यारे पर भी करुणा वरसाई अपनी जान की बाजी लगाकर मुझे जेल से निकलवाया। क्या ही अच्छा हो, मैं अपना सारा जीवन इनके चरणों में गुजारूं और इन जैसी समता अपनाऊं। अपने विचारों को मूर्त रूप देते हुए बाबा श्री नारायण दास जी आचार्य जी के पास आए और कहने लगे- मुझे अपना शिष्य बना लो, मैं स्वयं को आपके चरणों में समर्पित करना चाहता हूं। आचार्य श्री जी ने सोचा ये बहुत आत्मा है, इसे वीर शासन का शरणा देना ही चाहिए और उन्हें दीक्षा दी गई। ये शीघ्र ही आगमों के पारगामी विद्वान् बन गए। इन्होंने ही आचार्य श्री जयमल जी महाराज  को संस्कृत तथा अन्यान्य विषय पढ़ाए क्षमा का प्रभाव कोई न नाप सकता है, न तोल सकता है।

इसका अगला भाग कल अपलोड होगा|

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सच्ची भक्ति लोगों को जोड़ती है, तोड़ती नहीं। (4th Part) Gurudev Shri Sudarshan Laal ji Maharaj
और उन्हें कड़ी से कड़ी सजा दिलवानी है। आचार्य जी ने कहा, उन दोनों को रिहा करवा दो, मुझे मारने वाले पर कोई रोष नहीं है। जैसा कि हरिकेश बल मुनि ने पुरोहितों को कहा था 'पुधिं च इण्हिं च अणागयं च मणप्पदोसो न मे अस्थि कोइ ॥ ' मेरे मन में हमलावर के प्रति न पहले नाराजगी थी, न अब है, और न भविष्य में रखूंगा।' इसलिए आप लोग तुरंत जाकर दोनों को पुलिस से छुड़वा लाओ। आचार्य श्री जी की आज्ञा से गांव के गणमान्य लोग थाने में गए। पुलिस से अपराधियों को छोड़ने की बात कही। पुलिस ने कहा- हम पर ऊपर से कार्रवाई हो सकती है, हम कैसे छोड़ सकते हैं। कानून व्यवस्था को कायम रखना हमारी जिम्मेदारी है। आप आचार्य जी को कह दो कि अब तो कानून अपना काम करेगा, वे निश्चिन्त रहें। जब आचार्य जी के पास ये संदेश पहुंचा तो उन्होंने अपने छोटे संतों से कहा- मुझे उठाओ। शिष्यों ने उठाया और वे शिष्यों का सहारा लेकर खुद थाने में पहुंच गए, अधिकारियों से कहा- जब तक आप इन्हें नहीं छोड़ोंगे, में आहार पानी का त्याग रखूंगा। सारा गांव पास खड़ा था। आचार्य जी अड़ गए। आखिर पुलिस ने गांव की रजामंदी से दोनों को छोड़ दिया। आचार्य श्री जी स्थानक आ गए। दोनों अपराधी भी आचार्य श्री जी के चरणों में आकर माफी मांगने लगे। उन्होंने तो पहले ही माफ कर दिया था ये होती है सच्ची क्षमा। ये क्षमा अपने पीछे - पीछे नई क्रांति को साथ लेकर आई थी। एक दीपक दूसरे दीपक को प्रज्वलित करता है। ऐसे ही एक अच्छा कार्य संसार में अच्छाई को जन्म देता है। 

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सच्ची भक्ति लोगों को जोड़ती है, तोड़ती नहीं। (3rd Part) Gurudev Shri Sudarshan Laal ji Maharaj
उसने कई लोगों को बर - खिलाफ करने की कोशिश की, मगर लोगों की श्रद्धा कम नहीं हुई। संयोग ऐसा बना कि उस साल वर्षा नहीं हुई। मारवाड़ में बरसात वैसे कम होती है, उस साल उतनी भी नहीं हुई। उसने कुछ लोगों को बरगलाना शुरू कर दिया और सिखा दिया कि इस जैन साधु-भूधर बरसात रोक रखी है। एक भोला या कहो मूर्ख किसान बहकावे में आ गया। उसने सोचा कभी मौका लगा तो इस साधु को मजा चखाऊंगा। उस मूर्ख ने अपनी अक्ल का तो प्रयोग किया नहीं और बिना वजह श्री भूधर जी महाराज से खार खाने लगा। उन दिनों श्री भूधर दास जी महाराज वहां की सूखी नदी के रेत में दोपहर को आतापना लेने जाते थे। एक दोपहर को वे आतापना ले रहे थे उस राजपूत किसान ने देखा, अब मौका है इसे ठिकाने लगाने का आव देखा न ताव, एक मजबूत लट्ठ लेकर आया और उनके सिर पर इतने जोर से मारा कि वो गिरकर बेहोश हो गए। मारने वाले ने सोचा-ये मर गए या थोड़ी देर में मर जाएंगे और मौके से भाग लिया। दूर से किसी ने उसे लट्ठ लेकर भागते देख लिया। देखने वाला पहले तो श्री भूधर जी महाराज  के पास आया। देखा
कि वे बेहोश पड़े हैं। उसने चीख- चीख कर लोगों को बुलाया। सैकड़ों लोग इकट्ठे हो गए। बेहोशी की हालत में तपस्वी जी को स्थानक में लाए।  उनको मरहम पट्टी की। उधर चश्मदीद गवाह के बयान से अपराधी की शिनाख्त हो गई। सारा गांव टूट पड़ा। पुलिस पर दबाव पड़ा, पुलिस ने उसे तुरंत गिरफ्तार कर लिया। उसके बयानों के आधार पर बाबा को भी गिरफ्तार कर लिया गया। पूरे गांव में रोष फैल रहा था। कुछ देर बाद आचार्य जी को होश आया। लोगों ने कहा- गुरुदेव, अपराधी और उसको उकसाने वाले बाबा को पकड़ लिया है 

इसका तीसरा भाग कल अपलोड होगा|

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सच्ची भक्ति लोगों को जोड़ती है, तोड़ती नहीं। (2nd Part) Gurudev Shri Sudarshan Laal ji Maharaj
आप लोगों ने आचार्य श्री भूधरदास जी महाराज का नाम सुना होगा ? ये श्री जयमल जी महाराज, श्री हस्तीमल जी महाराज, श्री मरुधर केसरी जी महाराज आदि महापुरुषों की संप्रदाय के ख्याति प्राप्त प्रतापी आचार्य थे। बड़ा प्रभाव था। कठोर तपस्या करते थे। उनका जन्म सन् 1670 में हुआ था तथा सन् सतरहसो अड़तालीस में स्वर्गवास हुआ। नौ साल तक अपने संघ के आचार्य भी रहे। एक बार कालूग्राम में इनका चातुर्मास चल रहा था। कालूग्राम मेड़ता के पास पड़ता है मेड़ता वही मेड़ता है जहां मीरा का जन्म हुआ था। जिसने कृष्ण की भक्ति में अपने राज महलों की चार दीवारियों को तोड़ और छोड़ दिया था। आचार्य श्री भूधर जी के पधारने से वहां की साधारण जनता भी उनके प्रवचनों में आने लगी। वहां का एक Local बाबा था श्री नारायण दास जी उसने देखा कि मेरे बहुत सारे भक्त जैन साधु के पास जाने लगे हैं। उसने कई लोगों को बर - खिलाफ करने की कोशिश की, मगर लोगों की श्रद्धा कम नहीं हुई।

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सच्ची भक्ति लोगों को जोड़ती है, तोड़ती नहीं। (First Part) Gurudev Shri Sudarshan Laal ji Maharaj
इसे Tit for Tat की Policy कहते हैं। 'शठे शाठ्यं समाचरेत्' शरीफ के साथ शराफत करो, बदमाश के साथ बदमाशी । 'कण्टकेनैव कण्टकम्' पैर में कांटा चुभ जाए तो कांटे से ही निकाला जाता है, ऐसे ही सामान्य जीवन में ईंट का बदला पत्थर से लिया जाने का सिद्धांत है। इसी साधारण धारणा के आधार पर एक दिन देवताओं ने निवेदन किया- 'हे शांत मूर्ति, इस दुष्ट बंदर को दंड देना चाहिए। इसने क्या तुमको खरीद लिया है या तुम इससे डरते हो?' देवताओं के इस परामर्श पर बोधिसत्व ने जो उत्तर दिया था, वह सुनने लायक है- "इस बंदर ने न मुझको खरीदा है, न मैं इससे डरता हूं। इसकी दुष्टता भी मैं समझता हूं और केवल सिर के एक झटके से अपने सींग से फोड़ डालने का बल भी मुझ में है परंतु में इसके अपराध को क्षमा करता हूं।" अपने से बलवान के अपराध तो विवश होकर सभी सहन कर लेते हैं, सहनशीलता तो वह है जो अपने से निर्बल के अपराध सहन करे।'
ये सोच की उच्चता ही व्यक्ति को महान बनाती है। बोधिसत्व के रूप में जो क्षमा उन्होंने प्रारंभ की, उसका सघन रूप उनमें बुद्ध के रूप में उभर कर आया। आज तो बौद्ध धर्म विश्वव्यापी धर्म है, परंतु विश्व में फैलने से पूर्व वह उस आत्मा में प्रगट हुआ था, जो भैंसा होकर भी क्षमा कर सकती थी।

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सच्ची महानता शक्ति में नहीं, क्षमा में है। (2nd Part) Gurudev Shri Sudarshan Laal ji Maharaj
भगवान् महावीर स्वामी के पूर्वभवों का वर्णन जैन ग्रंथों में प्राप्त होता है ऐसे ही महात्मा बुद्ध के पूर्वभवों का वर्णन उनके जातक ग्रंथों में उपलब्ध होता है, बुद्ध के पुराने भवों में उन्होंने कई गतियों में और योनियों में जन्म लिया था। उन भवों को बौद्ध विद्वान् 'बोधिसत्व' कहते हैं। बोधिसत्व के रूप में एक बार वे जंगली भैंसे का जीवन जी रहे थे। वैसे जंगली भैंसा बहुत गुस्सैल और भयानक होता है, मगर वह भैंसा बहुत शांत था। उसके सीधेपन का लाभ उठाकर एक बंदर उसे बहुत तंग करता था कभी उसकी पीठ पर कूदने लगता, कभी पूँछ खींच लेता और कभी-कभी तो उसकी आंखों में उंगली डाल देता ।
परंतु बोधिसत्व अर्थात् भैंसा फिर भी शांत रहता। अब आप बताइए, ऐसे में क्या चुपचाप सहना अच्छा है या अपराधी को पकड़कर सजा देना? आप तो यहीं कहेंगे कि ख्वामखाह परेशान करने वाले को खरा-खरा जवाब देना चाहिए।

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सच्ची महानता शक्ति में नहीं, क्षमा में है। (First Part) Gurudev Shri Sudarshan Laal ji Maharaj
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